On the occasion of Golden Victory Day, 16 th December,2021, Department of History, Mohanlal Sukhadia University, Udaipur, Indus International Research Foundation,New Delhi, and Resonance, Udaipur, organized an Extension Lecture and Felicitation Ceremony at Golden Jubilee Guest House, Mohanlal Sukhadia University in honor of the War Veterans of 1971.
The Organizing Secretary of the program was Dr. Peeyush Bhadaviya, Assistant Professor, Department of History, MLSU,and Director Events, IIRF, Chief Gueet was Lieutenant General Nand Kishore Singh Rathore and Keynote Speaker of the program was Col. Dr. Vijayakant Chenji, President IIRF. The Keynote Speaker Col. Dr. Vijay Kant Chenji, pointed out that the situation in East Pakistan became pathetic after the 1970 general election. The leader there, Sheikh Mujibur Rahman whose party, the Awami League, could not form the government despite getting the maximum number of seats. East Pakistan had to become the target of repression by West Pakistan. When the people there protested, the military commanders of West Pakistan created a massacre in East Pakistan, due to which lakhs of refugees came to India from East Pakistan and India was compelled to intervene. Understanding the situation, the then Prime Minister Indira Gandhi and General Sam Manekshaw devised a strategy, under which the Mukti Bahini formed in East Pakistan was trained by the Indian Army and the Indian Army together with them defeated the Pakistani army based in East Pakistan. He said that on March 25, 1971, through Operation Searchlight, thousands of people were taken captive and thousands of people were killed in East Pakistan. Sensing this situation, the Indian leadership raised the issue of East Pakistan’s problem on the world stage and told how West Pakistan is exploiting East Pakistan. The developments led to the Indo-Russian Treaty in August 1971, under which India got a strong partner for the future. After Pakistan’s air strike on 3 December 1971, India retaliated immediately and defeated Pakistan in 13 days. He said that for the first time after independence, the Indian Navy played an important role in which INS Vikrant had a significant contribution. In his lecture, he highlighted the events of each day from December 3 to December 16. He gave the number of casualties and injured of Indian and Pakistani army. He underlined the distinguished contribution of soldiers who were awarded the Param Vir Chakra and Maha Vir Chakra. Chief Guest Lt Gen NK Singh Rathore said that the strategy of the Indian Army was such that it should be less moving in the western sector and keep more speed in the east. He provided information about the war on Meghna river.
He told that after the victory, India should have taken war damages from Pakistan or should have acquired some strategic areas or should have kept the land conquered by India, doing so would have paid tribute to the Indian martyrs. According to him, the Prime Minister’s Office should have the ability to understand these situations and take decisions. He said that nothing was achieved by the Shimla Agreement and we released about 93000 soldiers of Pakistan and Pakistan still could not improve till date.
Giving the Presidential address, the Dean of Arts College, Prof CR Suthar gave the credit of the 1971 victory to the brave soldiers. He said that even today in every weather, the Indian Army stands firm in the face of adversity and is protecting the nation. Earlier, at the beginning of the program, Professor Digvijay Bhatnagar, Head of the Department of History welcomed the guests. The vote of thanks was given by Organizing Secretary Dr. Peeyush Bhadaviya, Assistant Professor, Department of History, Mohanlal Sukhadia University. The program was conducted by Narpat Rajguru and Dhruvi Nagda. NCC cadets and NCC officers of Mohanlal Sukhadia University were present in the program. Col Bhaskar Chakraborty, NCC in-charge of Udaipur Division, Colonel Anil Singh Rathore, Director of Sainik Welfare Board, Retired Colonel Mahesh Gandhi, and 1971 War Veterans were present in the program.
स्वर्णिम विजय दिवस चौकी इतिहास विभाग ,मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय द्वारा गोल्डन जुबली गेस्ट हाउस मोलासुवि, में मनाया गया
इंदिरा गांधी की दृढ़ इच्छा शक्ति एवं जनरल सैम मानेकशॉ की रणनीति से बांग्लादेश का निर्माण ।
यह विषय स्वर्णिम विजय दिवस के अवसर पर इतिहास विभाग मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर, इंडस इंटरनेशनल रिसर्च फाउंडेशन, और रेसोनेंस ,उदयपुर ,द्वारा गोल्डन जुबली गेस्ट हाउस, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में आयोजित विस्तार व्याख्यान एवं 1971 के वार वेटरन के सम्मान के दौरान निकल कर आया।
कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ पीयूष भादविया, सहायक आचार्य,इतिहास विभाग ने बताया कि इस विस्तार व्याख्यान एवं सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि लेफ्टिनेंट जनरल नंदकिशोर सिंह राठौड़ थे। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता कर्नल डॉ विजयकांत चेंनजी, अध्यक्ष आईआईआरएफ थे।
मुख्य वक्ता कर्नल डॉ विजय कांत जैन जी ने बताया कि 1970 के आम चुनाव के बाद पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति दयनीय हो गई।वहां के नेता शेख मुजीबुर रहमान जिनकी पार्टी, अवामी लीग, सबसे अधिक सीटें लाने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई। पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान के दमन का निशाना बनना पड़ा। जब वहां की जनता ने विरोध किया तो पश्चिमी पाकिस्तान के सैन्य कमांडरों ने पूर्वी पाकिस्तान में कत्लेआम मचाया जिसके कारण पूर्वी पाकिस्तान से भारत में लाखों की संख्या में शरणार्थी आए और भारत को मजबूरी में हस्तक्षेप करना पड़ा। स्थिति को समजते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और जनरल सैम मानेकशॉ ने रणनीति बनाई, जिसके तहत पूर्वी पाकिस्तान में गठित मुक्ति वाहिनी को भारतीय सेना के द्वारा प्रशिक्षण दिया गया और भारतीय सेना ने उनके साथ मिलकर पूर्वी पाकिस्तान में स्थित पाकिस्तानी सेना को पराजित किया। उन्होंने कहा कि 25 मार्च 1971 को ऑपरेशन सर्चलाइट के जरिए पूर्वी पाकिस्तान में हजारों लोगों को बंदी बनाया गया और हजारों लोगों का कत्ल किया गया। इस स्थिति को भांपते हुए भारतीय नेतृत्व ने विश्व पटल पर पूर्वी पाकिस्तान की समस्या का मामला उठाया और बताया कि किस प्रकार पश्चिम पाकिस्तान पूर्वी पाकिस्तान का शोषण कर रहा है। घटनाक्रमों के चलते अगस्त 1971 में भारत रूस संधि हुई, जिसके तहत भारत को भविष्य के लिए एक मजबूत साथी मिला। 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के हवाई आक्रमण के बाद भारत ने तुरंत जवाबी हमला किया और 13 दिनों में पाकिस्तान को धूल चटा दी 16 दिसंबर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान के कमांडर इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल ए ए के नियाजी ने लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण किया। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद प्रथम बार भारतीय नौसेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसमें आई एन एस विक्रांत का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने अपने व्याख्यान में 3 दिसंबर से 16 दिसंबर तक की प्रत्येक दिन की घटना पर प्रकाश डाला।उन्होंने भारतीय और पाकिस्तानी सेना के हताहतों एवं घायलों की संख्या बताइ। उन्होंने परमवीर चक्र और महावीर चक्र से सम्मानित सैनिकों के विशिष्ट योगदान को रेखांकित किया।
मुख्य अतिथि लेफ्टिनेंट जनरल एनके सिंह राठौर ने कहा की भारतीय सेना सेना की व्यू रचना इस प्रकार थी कि पश्चिमी क्षेत्र में कम गतिमान रहना एवं पूर्व में गति ज्यादा रखना। उन्होंने मेघना नदी पर हुए युद्ध की जानकारी प्रदान करी।
उन्होंने बताया कि विजय के पश्चात भारत को पाकिस्तान से युद्ध हर्जाना लेना चाहिए था या फिर कुछ सामरिक क्षेत्र अधिग्रहित करने चाहिए थे या भारत द्वारा विजीत जमीन को अपने पास ही रखना चाहिए था ऐसा करने पर भारतीय शहीदों को उचित श्रद्धांजलि होती। उनके अनुसार प्रधानमंत्री कार्यालय में इन स्थितियों को समझने एवं निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि शिमला समझौते से कुछ हासिल नहीं हुआ और हमने पाकिस्तान के करीब 93000 सैनिकों को छोड़ा और पाकिस्तान फिर भी आज तक सुधर नहीं पाया।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कला महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो सीआर सुथार ने 1971 की विजय का श्रेय वीर सिपाहियों को दिया। उन्होंने कहा कि आज भी हर मौसम में विपरीत परिस्थितियों में भारतीय सेना अडिग है और राष्ट्र की रक्षा कर रही है। इससे पूर्व कार्यक्रम के प्रारंभ में इतिहास विभागाध्यक्ष प्रोफेसर दिग्विजय भटनागर ने अतिथियों का स्वागत किया। धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव डॉ पीयूष भादविया, सहायक आचार्य,इतिहास विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय ने दिया। कार्यक्रम का संचालन आयोजन सचिव नरपत राजगुरु और धुवी नागदा ने किया। कार्यक्रम में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के एनसीसी कैडेट्स एवं एनसीसी अधिकारी मौजूद थे। कार्यक्रम में उदयपुर डिवीजन के एनसीसी प्रभारी कर्नल भास्कर चक्रवर्ती, सैनिक कल्याण बोर्ड के डायरेक्टर कर्नल अनिल सिंह राठौड़, रिटायर्ड कर्नल महेश गांधी ,एवं 1971 के वार वेटरन मौजूद थे।